भारतेंदु हरिश्चंद्र के माता का नाम रुंमति देवी था। वे भारतीय साहित्य और रंगमंच के महान साहित्यकार और नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र की माँ थीं। भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था, और वे भारतीय साहित्य और संस्कृति के एक महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं। उनके जीवन और कार्यों में उनकी माँ का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि रुंमति देवी ने उन्हें जीवन के शुरुआती वर्षों में नैतिकता, संस्कार, और धार्मिक मूल्यों का महत्व सिखाया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय
भारतेंदु हरिश्चंद्र का असली नाम हरिश्चंद्र था, लेकिन उन्हें भारतेंदु के नाम से प्रसिद्धि मिली, जिसका अर्थ है “भारत का चंद्रमा”। वे हिंदी साहित्य के पुनर्जागरण के एक महान नेता थे और हिंदी साहित्य को एक नई दिशा देने वाले व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। उनका कार्य भारतीय समाज के सुधार के लिए प्रेरणास्त्रोत था, और वे राष्ट्रीय जागरण की विचारधारा में गहरे रूप से शामिल थे।
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने जीवन में कई प्रमुख नाटक और कविताएँ लिखीं, जो आज भी साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। उनके नाटकों में “आधुनिक साक्षरता, भारतीय परंपरा, और सामाजिक सुधार” जैसे विषय प्रमुखता से उठाए गए हैं। भारतेंदु के लेखन और नाटककारिता ने भारतीय समाज में जागरूकता और सामाजिक सुधार की लहर दौड़ाई।
रुंमति देवी का योगदान
रुंमति देवी का जीवन बहुत साधारण था, लेकिन उनके विचार और उनके बच्चों के प्रति उनके संस्कार अत्यंत महत्वपूर्ण थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवन में उनके माता-पिता का बहुत बड़ा प्रभाव था, और वे हमेशा अपने बच्चों को उच्चतम नैतिकता और संस्कारों के साथ पालन-पोषण देने में विश्वास करती थीं। उनके आदर्श और संस्कारों ने भारतेंदु को जीवन के कई कठिन दौरों में मार्गदर्शन दिया।
रुंमति देवी का भारतीय पारंपरिक परिवारों में विशेष स्थान था। वे एक समर्पित और त्यागपूर्ण माँ थीं, जिन्होंने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने के साथ-साथ उन्हें उच्च शिक्षा की ओर प्रेरित किया। यह रुंमति देवी का ही प्रभाव था कि भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्य और कला के प्रति झुकाव काफी प्रारंभ से ही विकसित हुआ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के काव्य और नाट्य लेखन में मातृत्व का प्रभाव
भारतेंदु हरिश्चंद्र के काव्य और नाट्य लेखन में मातृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे अपने लेखन में समाज के उन पहलुओं को उजागर करते थे जो सुधार के लिए आवश्यक थे। वे महिलाओं के अधिकारों, बच्चों की शिक्षा, और परिवार की भूमिका पर भी खासा ध्यान देते थे। उनके नाटकों में कई बार महिला पात्रों को सम्मान देने का संदेश दिया गया, जो उनके अपने घर और माँ के संस्कारों से प्रेरित था।
निष्कर्ष
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन और उनका साहित्य भारतीय समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उनके माता, रुंमति देवी, का योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि वे न केवल एक माँ के रूप में, बल्कि एक शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थीं। भारतेंदु हरिश्चंद्र की लेखनी और उनकी विचारधारा ने न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय समाज में जागरूकता और सुधार की दिशा में एक स्थायी छाप छोड़ी।
रुंमति देवी की शिक्षाओं और संस्कारों का असर भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवनभर के कार्यों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, और उनकी प्रेरणा से ही भारतेंदु ने साहित्य और समाज के लिए अपना योगदान दिया।
FAQ’s
प्रश्न: – भारतेंदु हरिश्चंद्र के माता का नाम क्या था?
उत्तर: – भारतेंदु हरिश्चंद्र के माता का नाम रुंमति देवी था।
प्रश्न: – भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म कब हुआ था?
उत्तर: – भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को काशी (वाराणसी) में हुआ था।
प्रश्न: – भारतेंदु हरिश्चंद्र ने किस क्षेत्र में योगदान दिया था?
उत्तर: – भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्य, नाटक, और हिंदी साहित्य के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।